रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से निपटना एक ‘नैतिक अनिवार्यता’, अहम घोषणा-पत्र पारित
एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध या रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance/AMR) एक ऐसा अदृश्य घातक ख़तरा है, जो हर वर्ष सीधे तौर पर 13 लाख मौतों के लिए ज़िम्मेदार है और किसी न किसी तरह 50 लाख अन्य मौतों का कारण बनता है.
लेकिन, इस ख़तरे से निपटने के लिए कई उपाय उपलब्ध हैं, जिनमें स्वच्छता व साफ़-सफ़ाई से लेकर टीकाकरण तक शामिल हैं.
गुरूवार को पारित घोषणा-पत्र में लक्ष्य स्थापित करने के साथ-साथ, इस चुनौती से निपटने के लिए अहम समाधानों को चिन्हित किया गया है. इनमें एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के कारण होने वाली मौतों में 2030 तक 10 फ़ीसदी की कमी लाने की बात कही गई है.
साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में वित्त पोषण सुनिश्चित करने की अपील की गई है ताकि 2030 तक कम से कम 60 फ़ीसदी देशों में AMR केन्द्रित योजनाओं को समर्थन दिया जा सके.
यूएन महासभा के 79वें सत्र के लिए अध्यक्ष फ़िलेमॉन यैंग ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध को मौजूदा दौर के सबसे बड़े ख़तरों में से एक बताया और कहा कि AMR केवल एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट ही नहीं है, बल्कि यह विकास से जुड़ा मुद्दा भी है.
एंटीबायोटिक्स से लेकर एंटीवायरल जैसी एंटीमाइक्रोबियल दवाएँ, हर रोज लाखों लोगों का जीवन बचाने में कारगर साबित होती हैं. लेकिन सम्भव है कि एक दिन ये दवाएँ असर करना बन्द कर दें.
जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक व परजीवी जैसे सूक्ष्मजीवों पर रोगाणुरोधी दवाओं का असर होना बन्द हो जाए, तब रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) की स्थिति उत्पन्न होती है.
महासभा प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि मनुष्यों, पशुओं और पौधों में होने वाली बीमारियों का उपचार करने की हमारी क्षमता के नज़रिये से यह बेहद अहम है. साथ ही, खाद्य सुरक्षा व संरक्षा, पोषण, आर्थिक विकास, समता व पर्यावरण संरक्षण के लिए भी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने ध्यान दिलाया कि पेनिसिलिन की खोज करने वाले ऐलेक्ज़ेंडर फ़्लेमिंग ने 1945 में ही, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद अपने सम्बोधन में AMR के ख़तरों के बारे में आगाह किया था.
स्वास्थ्य, विकास के लिए ख़तरा
यूएन एजेंसी प्रमुख ने कहा कि AMR स्वास्थ्य एवं विकास के लिए बड़े ख़तरों में हैं, जिससे मेडिकल क्षेत्र में दशकों से जारी प्रगति की दिशा पलट सकती है.
डॉक्टर टैड्रॉस ने कहा कि यह भविष्य की कोई कल्पना नहीं है, यह अभी आ ही चुका है और कोई भी देश इस ख़तरे से अछूता नहीं है. निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में इसका बोझ अधिक होगा, जहाँ कम संख्या में ही नई व कारगर एंटीबायोटिक्स पर शोध चल रहा है.
संगठन प्रमुख ने कहा कि अधिकाँश देशों ने वर्ष 2016 में पहली बड़ी बैठक के बाद प्रगति की है, मगर अभी और क़दम उठाए जाने और धनराशि का प्रबन्ध करना बाक़ी है, ताकि समय रहते इस चुनौती पर पार पाया जा सके.
उन्होंने गुरूवार को पारित हुए घोषणापत्र को वैश्विक कार्रवाई योजना की दिशा में पहला क़दम बताया, जिसे 2026 तक अमल में लाए जाने की सम्भावना है.
नैतिक अनिवार्यता
यूएन उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने कहा कि AMR एक जटिल और अस्तित्व पर मंडराता हुई चुनौती है, और वैश्विक स्वास्थ्य व विकास के लिए शीर्ष 10 ख़तरों में है. हर साल यह 13 लाख से अधिक मौतों की वजह है.
उपमहासचिव ने कहा कि ये केवल संख्या भर नहीं हैं. वे उन ज़िन्दगियों को दर्शाते हैं, जो ख़त्म हो गई हैं, परिवार जो बर्बाद हो गए हैं और भविष्य जिन्हें चुरा लिया गया है.
यूएन की वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पूरी दुनिया में इस संकट की वजह से हर साल, स्वास्थ्य देखभाल क़ीमतों, कामकाज की उत्पादकता घटने से 800 अरब डॉलर की चपत लगती है, और यह मेडिकल प्रगति के लिए जोखिम बनता जा रहा है.
उन्होंने कहा कि AMR से निपटना एक नैतिक अनिवार्यता है.
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